आज नवरात्र के तीसरे दिन जम्मू कश्मीर के गवर्ननर मनोज सिन्हा ने माँ कालका के दर्शन किए और महंत श्री सुरेन्द्रनाथ से भेंट कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। महंत जी ने चुन्नी उढ़ाकर और माँ कालका की मूर्ति भेंट कर उनका स्वागत किया।
अवसर पर मौजूद भक्तजनों को संबोधित करते हुए महंत श्री सुरेन्द्र नाथ अवधूत ने कहा कि नौ दिनों की दुर्गा पूजा में नवरात्रि के तीसरे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्व हैं। देवी दुर्गाजी की तीसरे स्वरूप का नाम चंद्रघंटा हैं, नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-अर्चन किया जाता है। उन्होंने कहा कि देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां दुर्गा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा है।
महंत जी ने बताया कि मां चंद्रघंटा का ध्यान धारण करने से भक्तों को सांत्वना, सुख और शांति की प्राप्ति होती हैऔर इनकी पूजा से भक्तों को आत्मिक उन्नति और समृद्धि की प्राप्ति भी होती है। इनकी उपासना से भक्तगण समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन जाते हैं। इनका वाहन सिंह है अतः इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है।
इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेत-बाधादि से रक्षा करती है। मां चंद्रघंटा की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि पौराणिक कथा के अनुसार जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा तो मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस समय असुरों का स्वामी महिषासुर था जिसका देवताओं से भंयकर युद्ध चल रहा था।
महिषासुर देव राज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। उसकी इस इच्छा को जानकार सभी देवता परेशान हो गए और इस समस्या से निकलने का उपाय जानने के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने उपस्थित हुए। देवताओं की विनती को सुनने के बाद तीनों देव बहुत क्रोधित हुए। क्रोध के कारण तीनों के मुख से जो अग्नि उत्पन्न हुई, उससे एक देवी अवतरित हुईं जिन्हें भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता के हाथों में अपने अस्त्र-शस्त्र सौंप दिए।
वहीं गौरखपार्क शाहदरा स्थित राजमाता मंदिर में स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज के सान्निध्य में नवरात्र महोत्सव के तीसरे दिन संस्थान के महापुरुषों द्वारा भोर के समय चंडी यज्ञ में आहुतियां अर्पित करते हुए मां चंद्रघंटा की धूप दीप नैवेद्य अर्पित करते हुए पूजा अर्चना की गई।मां चंद्रघंटा के घंटे की ध्वनि से राक्षसों का नाश हो जाता है।जिसका तत्वज्ञान यह है कि मां चंद्रघंटा के मस्तक पर शीतलता का सूचक अर्धचंद्र शोभायमान है।जोकि साधक को शांति प्रदान करता है।
मानव की सबसे बड़ी शक्ति शांति ही है जिसके पास शांति रूपी शक्ति है वह अपने किसी भी दुर्गुण काम क्रोध ईर्ष्या अहंकार रूपी दानव राक्षस का निर्मूल नाश करने में सक्षम हो जाता है।मंदिर प्रांगण में प्रसिद्ध गायक महंत दलीप चोपड़ा जी जोकि विभिन्न चैनलों पर भजन गायक के रूप में विख्यात हैं उन्होंने अपने साथी कलाकारों के साथ महामाई का गुणगान करते हुए कभी भाव विभोर करके नेत्रों में जल तो कभीभक्तसमूह को नाचने पर विवश कर दिया।नृत्य नाटिका कलाकारों द्वारा श्री राधेकृष्ण जी की नृत्य नाटिका "श्यामा रोज न बजाया करो बंसरी"भजन पर प्रस्तुत की गई जिस पर हर्षोल्लास का वातावरण निर्मित हुआ।