नवरात्रि के तीसरे दिन झंडेवालान मंदिर में मां चंद्रघंटा की भव्य और दिव्य आरती हुई जिसमें शामिल होने के लिए लोगों की अच्छी-खासी कतार लगी रही. नवरात्रि पर देवी दर्शन और पूजन कर भक्त बेहद खुश दिखे. नवरात्रि पर्व पर मंदिर विशेष तौर से सजाया गया है. यहां भी मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा के आगे भक्तों ने शीश झुकाकर आशीर्वाद मांगा. वैसे तो इस मंदिर में हमेशा ही श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है लेकिन नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की संख्या में खासी वृद्धि हो जाती है तड़के ही लोगों की लंबी लंबी लाइन लग जाती है। नवरात्र के दौरान लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं।
कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम झंडेवाला मंदिर
करोलबाग के पास एक प्राचीन मंदिर है झंडेवाला मंदिर। यह मंदिर दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस से भी सिर्फ तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। झंडेवाला मंदिर जहां है वह इलाका झंडेवाला के नाम से ही मशहूर हो गया है। यह सिर्फ दिल्ली ही नहीं देश-विदेश के पर्यटकों और श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध है। झंडेवाला मंदिर झंडेवाली देवी को समर्पित एक सिद्धपीठ है। इस मंदिर का धाार्मिक ही नही ऐतिहासिक महत्व भी है।
मंदिर के पदाधिकारियों के अनुसार झंडेवाला मंदिर का इतिहास दो सौ साल से भी पहले से शुरू होता है। जहां आज झंडेवाला मंदिर है, वहां पहले अरावली की पहाडियां और घने वन थे। दिल्ली के आसपास के लोग यहां सैर करने या प्राकृतिक सुदरंता को निहारने आते थे। चांदनी चौक के एक बड़े कपड़ा व्यापारी श्री बद्री दास भी यहां बराबर सैर और योग-ध्यान करने आते थे।
एक दिन बद्री दास जी यहां योग-ध्यान में लीन थे कि उन्हें अनुभूति हुई कि इस जगह के नीचे कोई प्राचीन मंदिर है। इसके बाद उन्हें सपने में भी उस जगह के पास मंदिर दिखाई दिया। इससे धार्मिक प्रवृति के बद्री दास जी के अंदर मंदिर के बारे में जानने की उत्सुकता जग गई।
बद्री दास जी सोते-जागते हर पल मंदिर में ही खोए रहने लगे। आखिरकार उन्होंने उस स्थान पर खुदाई की तो गहरी गुफा में देवी की एक मूर्ति और झंडा मिला। खुदाई के क्रम में देवी की मूर्ति के हाथ खंडित हो गए। बद्री दास जी ने मंदिर की ऐतिहासिकता को देखते हुए मूर्ति को उसी स्थान पर रहने दिया। उन्होंने टूटे हाथ से स्थान पर चांदी का हाथ लगा दिए, जिससे खंडित मूर्ति की पूजा का दोष ना लगे। इसके साथ ही उन्होंने उस स्थल के ऊपर देवी मां की एक नई मूर्ति स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा करवा दी।
देवी मां की यह मूर्ति गुफा में आज भी सुरक्षित स्थापित है। गुफा में ही पास की खुदाई में एक शिवलिंग भी दिखाई दिया था, लेकिन यह भी खंडित ना हो जाए इस डर से उसे वहीं पर रहने दिया गया। आज यह प्राचीन गुफा वाली देवी माता और शिवलिंग श्रद्धालुओं की श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। इस गुफा में उस समय जगाई गई ज्योति आज भी अखंड रूप में जल रही है। बताया जाता है कि नवरात्र के अवसर पर इनका दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
एक मान्यता है कि खुदाई में मूर्ति के साथ झंडा मिलने से इस मंदिर का नाम झंडेवाला मंदिर पड़ गया। जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार इस मंदिर बनाने के बाद इसके ऊपर एक बड़ा झंडा लगाया गया, जो पहाड़ी पर होने के कारण दूर से ही दिखता था। इसलिए इस मंदिर का नाम झंडेवाला मंदिर रख दिया गया। धीरे-धीरे यह मंदिर लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध हो गया। लोग दूर-दूर से देवी माता की पूजा अर्चना के लिए यहां आने लगे। इसके बाद बद्री दास जी ने अपना पूरा जीवन देवी मां की सेवा में ही समर्पित कर दिया।
बद्री दास जी के निधन के बाद उनके पुत्र श्रीरामजी दास और फिर पौत्र श्री श्याम सुंदर जी ने मंदिर के दायित्व को संभाला । श्री श्याम सुंदर ने वर्ष 1944 में मंदिर की व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाए रखने के लिए एक सोसायटी का गठन किया और उसका नाम बद्री भगत झंडेवाला टेंपल सोसायटी रखा गया । इस सोसायटी की ओर से दर्जनों धाार्मिक, सामजिक और धर्मार्थ कार्य किए जा रहे हैं। यहां डिस्पेंसरी, महिला स्वास्थ्य जांच केंद्र, सिलाई केंद्र और कई शैक्षणिक संस्थान भी चलाए जा रहे हैं।
मंदिर में एक संतोषी दरबार भी है जिसमें संतोषी माता, काली माता, वैष्णों माता, शीतला माता, लक्ष्मी माता, गणेश जी और हनुमान जी की प्रतिमाएं हैं। मुख्य मंदिर के बाहर एक नया शिवालय और काली मंदिर भी है। इस मंदिर में नवरात्र के अवसर पर काफी भीड़ रहती है। यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रहती हैं। दर्शन के लिए भक्तों को घंटों इंतजार करना पड़ता है लेकिन माता के प्रति श्रद्धा और भक्ति के कारण वे हर साल यहां आना नहीं छोड़ते हैं। श्रद्धालु यहां असीम शांति का अनुभव करते हैं।
रविवार, मंगलवार, प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी और प्रमुख त्योहारों पर मंदिर सारा दिन खुला रहता है। अन्य दिनों में मंदिर दोपहर 1.00 बजे से सायं 4.00 बजे तक बंद रहता है।