1885 में बनी कांग्रेस, 138 साल में 57 नेताओं ने संभाली कमान

Date: 2023-12-28
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देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस गुरुवार को अपना 139वां स्थापना दिवस मना रही है। इस अवसर पर पार्टी नागपुर में एक बड़ा आयोजन किया गया है। इस दौरान 'हैं तैयार हम' नाम की महारैली के साथ पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत करेगी।

1985 में बनी पार्टी भले ही विपक्ष में है, लेकिन कभी इसका देशभर में एकछत्र राज हुआ करता था। कई बार पार्टी में टूट हुई, लेकिन इसका अस्तित्व आज भी बरकरार है। यूं कहें तो इसका इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। आइये जानते हैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास के बारे में... 

28 दिसम्बर 1885 को थियिसोफिकल सोसायटी के प्रमुख सदस्य रहे एओ ह्यूम की पहल पर बम्बई (अब मुंबई) के गोकुलदास संस्कृत कॉलेज मैदान में देश के विभिन्न प्रांतो के राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा के लोग एक मंच पर एकत्रित हुए। यह राजनीतिक एकता एक संगठन में तब्दील हुई, जिसका नाम ‘कांग्रेस’ रखा गया। 

कांग्रेस की स्थापना के वक्त ह्यूम के साथ 72 और सदस्य थे। पार्टी के गठन के बाद ह्यूम संस्थापक महासचिव बने और वोमेश चंद्र बनर्जी को पार्टी का पहला अध्यक्ष नियुक्त गया। बनर्जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में देश में सामाजिक सद्भाव का नया वातावरण तैयार करने पर जोर दिया। इसके बाद से अब तक पार्टी को 56 अध्यक्ष मिल चुके हैं। सबसे ज्यादा 45 साल तक पार्टी की कमान नेहरु-गांधी परिवार के पास ही रही है। 

1885 से लेकर 1919 तक कांग्रेस में नेहरु-गांधी परिवार का ज्यादा दखल नहीं हुआ करता था। इसके बाद 1919 में कांग्रेस पार्टी के अमृतसर अधिवेशन में मोती लाल नेहरु को नया अध्यक्ष चुना गया। 1928 में उन्हें कलकत्ता के अधिवेशन में फिर से पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया। इसके अगले ही साल कांग्रेस की कमान मोती लाल नेहरु के बेटे पं. जवाहर लाल नेहरू को मिल गई। लगातार दो साल उन्होंने कमान संभाली, फिर सरदार वल्लभ भाई पटेल को नया अध्यक्ष चुन लिया गया।

1936 और 1937 में जवाहर लाल नेहरु फिर से अध्यक्ष बनाए गए। देश की आजादी के बाद 1951 में फिर से कांग्रेस की कमान पं. जवाहर लाल नेहरु को मिली। इस बार वो लगातार चार साल तक अध्यक्ष बने रहे। 

959 में कांग्रेस में इंदिरा गांधी की एंटी हुई और वह अध्यक्ष बनीं। 1960 में इंदिरा के हाथ से कांग्रेस की कमान नीलम संजीवा रेड्डी के पास चली गई। 1978 से 1983 तक फिर से इंदिरा अध्यक्ष रहीं। 1985 में कांग्रेस की कमान राजीव गांधी को मिली और छह साल तक उन्होंने कुर्सी संभाली। 1998 में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया और इसके बाद 2017 तक उन्होंने 19 साल तक पार्टी की टॉप लीडर बनी रहीं। 2017 में बेटे राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंप दी। हालांकि, कई राज्यों के चुनावों में मिली हार के बाद राहुल ने 2019 में अध्यक्ष पद छोड़ दी। तब से अक्तूबर 2022 तक सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहीं। 

दशकों बाद कांग्रेस ने अध्यक्ष पद की कुर्सी किसी गैर-गांधी परिवार के व्यक्ति को देने का फैसला किया। आखिरकार 26 अक्तूबर 2022 को मल्लिकार्जुन खड़गे को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।

कांग्रेस को अपनी इस यात्रा के कई बार बड़े झटके भी सहने पड़े हैं। 1885 में पार्टी की स्थापना हुई। तब से अब तक कांग्रेस ने 64 ऐसे बड़े मौके देखे, जब कांग्रेस छोड़ने के बाद नेताओं ने अपनी नई पार्टी बना ली। 1969 में तो कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने इंदिरा गांधी को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। तब इंदिरा ने अलग कांग्रेस बना ली थी।

शुरुआत आजादी से पहले की दो घटनाओं से करते हैं, जब कांग्रेस में टूट पड़ी और नए राजनीतिक दल का आगाज हुआ। 

1923 : चितरंजन दास ने कांग्रेस छोड़कर स्वराज पार्टी की स्थापना की थी। होम लाइब्रेरी की पुस्तक 'ग्रेट मेन ऑफ इंडिया' में इसका उल्लेख किया गया है। बताया गया है कि चितरंजन दास काउंसिल में शामिल होकर ब्रिटिश सरकार की नीतियों का नए तरह से विरोध करना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस अधिवेशन में उनका ये प्रस्ताव पास नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने स्वराज पार्टी बना ली। 1924 में दिल्ली में कांग्रेस के अतिरिक्त अधिवेशन में उनका ये प्रस्ताव पास हो गया। 1925 में स्वराज पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। 

1939: महात्मा गांधी से अनबन होने पर सुभाष चंद्र बोस और शार्दुल सिंह ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक नाम से अलग पार्टी खड़ी कर ली। पश्चिम बंगाल में अभी भी ये पार्टी अस्तित्व में है। हालांकि, इसका जनाधार काफी कम हो चुका है।

आजादी के बाद कांग्रेस में सबसे ज्यादा फूट पड़ी। तब से 2021 तक कांग्रेस छोड़ने वाले नेता 62 नई राजनीतिक पार्टी शुरू कर चुके हैं। आजादी के बाद कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं ने 1951 में ही तीन नई पार्टी खड़ी की। जीवटराम कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी, तंगुतूरी प्रकाशम और एनजी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी और नरसिंह भाई ने सौराष्ट्र खेदूत संघ नाम से अलग राजनीतक दल शुरू किया था। इसमें हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी का विलय किसान मजदूर प्रजा पार्टी में हो गया। बाद में किसान मजदूर प्रजा पार्टी का विलय प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सौराष्ट्र खेदूर संघ का विलय स्वतंत्र पार्टी में हो गया।

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