खेकड़ा
नगर के श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में श्री श्री108 आचार्य श्री वसु नंदी महामुनि के सानिध्य में देर रात छुल्लक दीक्षा प्रारंभ कराने के कुछ समय बाद ही मोक्ष को प्राप्ति पर मृत्यु महोत्सव मनाया गया तथा डोला सजाया गया और बैंड बाजों की धुन पर अबीर गुलाल उडाते हुए नवदीक्षित सुदेवानंद जी महाराज की यम संलेखना पूर्वक समाधि संस्कार में दिल्ली, हरियाणा और यूपी के आसपास के जनपदों से भी श्रद्धालुओं ने प्रतिभाग किया।
बता दें कि, देर शाम गुरुग्राम से एक जैन परिवार ब्रह्मचारी भैया ब्रह्नप्रकाश जैन को बहुत अधिक अस्वस्थता की हालत में बड़ा मंदिर की में आए व उन्हें छुल्लक दीक्षा दिलाकर उनको धर्म प्राप्त कराना चाह रहे थे।
इस कार्य के लिए आचार्य श्री वसुनंदी महाराज अमींनगर सराय से देर शाम खेकड़ा आए तथा उनको छूल्लक दीक्षा दी तथा पिच्छी ,कमंडल, शास्त्र व पात्र भी दान देने का सौभाग्य हम सभी को प्राप्त कराया गया और धर्मचर्चा भी हुई। इसी बीच उन्होंने सद्गति यानि मोक्ष को वरण कर लिया।
सुनना है अतः अधिक से अधिक संख्या में बड़ा मंदिर जी में अवश्य पहुंचे
नव दीक्षित सुदेवानंद जी महाराज की यम सल्लेखना पूर्वक समाधि संपन्न कराने हेतु सुबह से ही आसपास के जनपदों तथा दिल्ली व हरियाणा राज्यों से भी धर्मप्रेमी जुटने शुरू हो गये।
बैंड बाजों के साथ मृत्यु महोत्सव मनाते हुए डोला सजाया गया तथा नव दीक्षित क्षुल्लक सुदेवानंद को बैठाकर होली की तरह अबीर गुलाल उडाते हुए तथा णमोकार मंत्रोच्चार करते हुए नाचते गाते जैन कालेज मैदान में जैन मुनि वसुनंदी महाराज की देखरेख में समाधि तैयार कर चंदन, नारियल, देसी घी आदि सुगंधित द्रव्यों के मध्य अग्नि के माध्यम से पंचतत्व में विलीन किया गया।
इस दौरान नव दीक्षित सुदेवानंद क्षुल्लक के पुत्र पौत्र पत्नी सहित बड़ी संख्या में जैन समाज के लोगों ने हर्षोल्लास के साथ शोभायात्रा में हिस्सा लिया।
उनके पुत्र व पौत्र पूरे रास्ते कमंडलु से जल सिंचन करते हुए आगे चल रहे थे। जैन कालेज के प्रबंधक राहुल जैन, राकेश जैन, मुकेश जैन, विशेष जैन, प्रमोद, नरेश, नरेंद्र, मा प्रदीप कुमार, विकास, मनोज, अमित आदि सहित बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी शोभायात्रा में हिस्सा लिया।
पत्नी की प्रेरणा से 10 दिन पहले ही छोडी थी बीड़ी ,तभी ली दीक्षा
खेकड़ा। क्षुल्लक सुदेवानंद बनने से पूर्व ब्रह्मप्रकाश गुडगाँव में अपने पुत्र व पौत्रों के साथ व्यापार में तल्लीन रहते थे। धार्मिक विचार जरूर थे, किंतु बीड़ी की लत छुटने का नाम नहींं ले रही थी। ऐसे में उनकी पत्नी निर्मला जैन ही उनकी प्रेरणा स्रोत बनी।
हुआ यूं कि, जब भी ब्रह्म प्रकाश मोहमाया छोड़कर जैन धर्म की दीक्षा लेने की बात कहते थे तो धर्मपत्नी निर्मला तपाक से बोल उठती थी कि, बीड़ी तो छूट नहीँ रही, मोह माया छोडने की बात कहते हो।
बस, फिर क्या था, उन्होंने बीड़ी छोडने की ठान ली। निर्मला जैन बताती हैं कि, पिछले 10 दिन से बीड़ी छोड दी थी तथा धार्मिक चर्चा में मन लगाए रहते थे। इसबीच अस्वस्थ हो गये, जिसपर गुडगाँव और फिर दिल्ली एम्स में इलाज चला।
अंतिम समय निकट जानकर उनकी इच्छा के अनुसार दीक्षा दिलाने का प्रबंध हुआ।सौभाग्य रहा कि, दीक्षा के विधिविधान के बाद उन्होंने मृत्यु का वरण किया।
नवदीक्षित सुदेवानंद यानि ब्रह्मप्रकाश मूलतः शामली के वासी रहे हैं।परिवार इस समय गुरुग्राम में फलफूल रहा है। उनकी भाभी संतोष, प्रिया, पत्नी निर्मला, पुत्र व पौत्र सुनील शरद, अमित नवीन आदि ने बताया कि, क्षुल्लक बनने से पूर्व भी धर्म, समाज में सेवा, सहयोग में सदा आगे रहने की उनकी परंपरा को कायम रखा जाएगा।