रुक क्यों गये राम? शरसंधान करो।" राजर्षि विश्वामित्र ने बालक राम को आदेशित किया।

Date: 2024-02-21
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पर गुरुदेव सामने एक स्त्री है। एक क्षत्रिय स्त्री पर हाथ नहीं उठा सकता फिर उसके वध के लिये उद्यत कैसे हो?" स्त्री और राक्षसी के भेद से अज्ञात जिज्ञासु राम ने गुरु विश्वामित्र से प्रश्न किया।

"मूर्खता न करो राम। सामने स्त्री नहीं राक्षसी है। स्त्री और राक्षसी के भेद को समझो। स्त्री मातृत्व की मूर्ति है जो सृजन कर सृष्टि के निर्माण में परमात्मा की सहयोगिनी बनती है। इसीलिए वह अवध्य है।

पर एक राक्षसी उसी सृष्टि में विध्वंस रचाती है। निर्दोषों का संहार करती है। ऋषि मुनियों को प्रताड़ित करती है। एक राक्षसी स्त्री होने की अहर्ता पूरी ही नहीं करती। इसीलिये उसका वध शास्त्र सम्मत भी है।"

"कुछ समय पूर्व जिन बेजान मानव अस्थियों को तुमने अपने कमल सर्द्श पैरो से छुआ था। वो किसी समय सजीव हुआ करती थी। उस सजीव को इसी राक्षसी ने असमय काल कलवित कर दिया।"

"माना एक स्त्री पर हाथ उठाना भी एक क्षत्रिय के लिये पाप है किन्तु निर्दोषों की रक्षा करना और ऋषि मुनियों को संरक्षण प्रदान करना भी क्षात्रधर्म है। अत: ये दंड की भागी है। इसीलिये हे राम शरासन की प्रत्यंचा तानो और शरसंधान करो..."

शरसंधान शब्द के वायुमंडल में गूंजित होने से पूर्व ही राम के शर ताड़का की ग्रीवा का रक्त चख चुके थे। अगले ही क्षण उसका मस्तक भूमंडल पर डोलने लगा।

राम को अब स्त्री और राक्षसी का भेद समझ आ चुका था। शुक्र है अब राम के वंशज भी ये भेद समझने लगे हैं। इसीलिये अब ताड़का वध के समय उन्हें विश्वामित्र के मार्गदर्शन की जरूरत भी नहीं होती।

काल भले ही त्रेता से कलियुग की यात्रा कर चुका हो। भले ही वध के तरीके भिन्न हो गए हों। तब शरों से वध होता था आज शब्दों से होने लगा है। पर अभीष्ट आज भी एक ही है। ताड़का वध और वो होकर रहेगा...

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