छत्तीसगढ़ में नए मुख्यमंत्री का इंतजार खत्म हो गया है। भाजपा विधायक दल की बैठक में विष्णुदेव साय के नाम पर मुहर लगाई गई है। विष्णुदेव साय ने अपना राजनीतिक सफर सरपंच से शुरू किया था। भाजपा ने मुख्यमंत्री के कई दावेदारों के बीच उन्हें छत्तीसगढ़ के सीएम के लिए चुना है। चार बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे साय का परिवार लंबे समय से राजनीति से जुड़ा रहा है। आइए जानते हैं साय के सरपंच से सीएम तक के राजनीतिक सफर को।
विष्णुदेव साय पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के करीबी हैं। रमन सिंह 2003 से 2018 तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे हैं। साथ ही साय को आरएसएस का भी करीबी माना जाता है।
विष्णुदेव साय ने एक गांव के सरपंच से अपना सियासी करियर शुरू किया था। इसके बाद वह सियासत में तेजी से आगे बढ़े। 2014 में केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली मंत्रिपरिषद के सदस्य बने।
आदिवासी बहुल जशपुर जिले के एक छोटे से गांव बगिया के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले विष्णुदेव साय के खून में राजनीति है। उनके दादा स्वर्गीय बुधनाथ साय 1947 से 1952 तक मनोनीत विधायक थे। उनके 'बड़े पिता जी' (उनके पिता के बड़े भाई) स्वर्गीय नरहरि प्रसाद साय जनसंघ के सदस्य थे और दो बार ( 1962-67 और 1972-77) विधायक रहे। इसके बाद सांसद (1977-79) बने और जनता पार्टी की सरकार में राज्य मंत्री बने।
उनके पिता के दूसरे बड़े भाई स्वर्गीय केदारनाथ साय भी जनसंघ के सदस्य थे और तपकारा से विधायक (1967-72) थे।
विष्णु देव साय ने कुनकुरी के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और स्नातक की पढ़ाई के लिए अंबिकापुर चले गए, लेकिन बीच में ही पढ़ाई छोड़कर 1988 में अपने गांव लौट आए. 1989 में, उन्हें बगिया ग्राम पंचायत के 'पंच' के रूप में चुना गया और अगले साल वह निर्विरोध सरपंच बन गए।
ऐसा माना जाता है कि भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव ने उन्हें 1990 में चुनावी राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित किया था। उसी साल साय अविभाजित मध्य प्रदेश में तपकरा (जशपुर जिले में) से भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए। 1993 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से दोबारा जीत हासिल की। 1998 में उन्होंने पास की पत्थलगांव सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। बाद में वह लगातार चार बार - 1999, 2004, 2009 और 2014 - रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए. हालांकि, भाजपा ने उन्हें 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के पत्थलगांव से मैदान में उतारा, लेकिन वह दोनों बार चुनाव हार गए।
2014 में पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद साय को इस्पात और खनन राज्य मंत्री बनाया गया था। वह छत्तीसगढ़ के उन 10 भाजपा सांसदों में से थे, जिन्हें 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए टिकट देने से इनकार कर दिया गया था।
उन्होंने 2006 से 2010 तक और फिर जनवरी-अगस्त 2014 तक भाजपा के छत्तीसगढ़ प्रमुख के रूप में जिम्मेदारी निभाई। 2018 में राज्य में भाजपा की हार के बाद उन्हें 2020 में फिर से छत्तीसगढ़ में पार्टी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई। विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले 2022 में उनकी जगह ओबीसी नेता अरुण साव को ले लिया गया।
इस साल नवंबर में चुनावों से पहले साई को जुलाई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया। चुनाव में उन्हें कुनकुरी सीट से मैदान में उतारा गया, जहां उन्होंने कांग्रेस के मौजूदा विधायक यूडी मिंज को 25,541 वोटों के अंतर से हराकर जीत हासिल की।
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बाद आज आयोजित बैठक में सर्वसम्मति से साय को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया। भाजपा विधायकों की बैठक में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने साय